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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।

अथवा
कयमास वध की मूल संवेदना को प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर -

'कयमास वध' नामक समय का मुख्य प्रतिपाद्य कयमास का वध किये जानने की परिस्थिति एवं प्रासंगिकता पर दृष्टि डालना है। परन्तु इस घटना के साथ अन्य महत्वपूर्ण प्रसंगों को वर्णित करना रासोकार का ध्येय रहा है। 'कयमास वध' में पृथ्वीराज द्वारा शूर, सामन्त, विश्वासपात्र मंत्री का वध किया जाना वर्णित हुआ है। यहाँ हम महा प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान के व्यक्तित्व का वह दुर्बल पक्ष देखते हैं जिसके द्वारा वह दूसरों की सामान्य त्रुटि पर भी क्षमादान नहीं देता था वरन् क्रोध के आवेग में बिना परिणाम का विचार किए लोगों को उनके अपराध हेतु भयंकर दण्ड दे देता था।

चन्दबरदायी कहते हैं. -

हन्यौ दासि के हेत कैमास बना। गज खून चांमुड बेड़ी बधान॥
बँधे कन्ह काका चणं पट्ट गाढ़े। बिना दोष मंडीर से भ्रत काठे॥
बरज्जंत चंद मिल्यौ हूँ कनौज तहाँ सूर सामंत कठिन घट्टि फैजं॥
लिय राज लोकं रमतं सिकारं। भ्रमं केहरी केदरा रिष्य जारं॥

प्रस्तुत छन्द के अनुसार दासी के कारण कयमास को मारा। हाथी के वध के आरोप पर चामुंडराय जैसे साहसी सामंत को पैरों में बेड़िया डलवा दी। कन्ह जो इनके चाचा भी थे अपराध के दण्ड स्वरूप उनकी आँखों पर हीरे जवाहरात और सोने की पट्टी बँधवा दी। इस तरह अनेक विवेकहीन कृत्यों की पूर्व स्मृतियाँ पृथ्वीराज को गजनी में गौरी की कैद के समय उद्वेलित करती हैं। इस तरह से देखा जाए तो 'कयमास वध' का प्रसंग पृथ्वीराज चौहान की निरंकुश मनोवृत्ति का भी परिचय देता है। इसी कारण कयमास के वध का रहस्य जानकर भी चन्द नियत समय तक मौन धारण किए रहता है। महाराज से प्राण रक्षा का वचन प्राप्त करने के बाद ही वह इस निर्मम कृत्य का रहस्योद्घाटन करता है। कयमास जैसे योग्य सूर वीर, सामंत हितैषी, कर्तव्यनिष्ठ मंत्री की एक छोटी सी भूल की सजा महाराज को मृत्यु के अतिरिक्त अन्य न प्रतीत हुई जो उसके क्षणिक आवेश में आकार लेने वाली विवेकहीनता का ही परिचय देती है। वहीं चौहान द्वारा मात्र कैमास को दण्डित किया जाना दासी को छोड़ देना भी उसकी निर्णय क्षमता पर प्रश्न चिह्न उपस्थित करता है। साथ ही पृथ्वीराज की संयोगिता के प्रेम में पड़कर राज-काज से विरक्त हो आखेट में ही रम जाना तथा विरह व्यथा भुलाने हेतु अन्यत्र समय बिताने आदि प्रसंगों पर भी यथेष्ट दृष्टि डाली गई है। चन्दरबरदाई के कहने पर स्वयं के स्वार्थ की पूर्ति व सिद्धि होने के आश्वासन पर ही कयमास का शव देने के लिए तैयार हो जाना आदि पृथ्वी के चरित्र के दुर्बल पक्षों को भी संकेतित करते है। इस प्रकार 'कामात् क्रोधामि जायते' की उक्ति पृथ्वी के चरित्र पर सटीक बैठती है। कयमास की गलती को वह बढ़ा चढ़ा कर आँकता है वहीं करनाटी को दण्ड नहीं देता। पृथ्वीराज जो कि स्वयं काम व विरह पीड़ित विदग्ध हो घूम रहा है कयमास के काम प्रसंग को सुनकर इस तरह क्रोधित होता है कि बिना कुछ विचार किए ततक्षण उसे मार देता है। इस प्रकार रासोकार उसके धैर्यहीन क्रोधी स्वभाव को ही व्यंजित करता है। कयमास वध के प्रसंग में हमें चन्दरबरदाई का सार्थक कवित्व भी दृष्टिगोचर होता है - सरस्वती की वरमुद्रा उन्हें सहज रूप में ही प्राप्त है तभी सरस्वती के प्रत्यक्ष दर्शन का वर्णन देखिए -

"मराल बाल आसनं, कलित्त छाय सासनं॥
सोहति जासु तुम्बरं। सुराग राज घुमरं॥
कयंद केस मुक्करे। उरग्ग बास बिछठरे।'

अर्थात् सरस्वती बाल हंस के आसन पर विराजमान थी। उन पर भ्रमर का शासन छाया हुआ था। उनके हाथ में वीणा का तुंबा शोभायमान था जिससे श्रेष्ठ राग का धुआँ अर्थात् ध्वनि निकल रही थी।

इस प्रकार चन्दरबरदायी कयमास वध में अपनी सिद्धि का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। पृथ्वीराज द्वारा यह कहे जाने पर कि या तो वे बताएँ कि कैमास कहाँ है या स्वयं को वर सिद्धि धारण करने वाला कहना छोड़ दे। तो कवि उत्तर देते हैं कि यदि शेषनाग पृथ्वी को धारण करना, महादेव विषपान, सूर्य अपना तेज छोड़ दे तभी वे वरदानी कहलाना छोड़ सकते हैं। (अर्थात् उनका वर प्राप्त कर वरदायी कहलाना भी अटल है) इस प्रकार वे प्राणदान का वचन पाकर सभा के सम्मुख कयमास के वध का यथावत् वृत्तांत प्रस्तुत करके अपनी सिद्धि का प्रमाण दे देते हैं। इस तरह से हम देखते हैं कि कवि का मंतव्य भारतीय पौराणिक मान्यताओं की परम्परावादी विचारधाराओं को समर्थन देना भी रहा है। कयमास वध के अनेक स्थलों पर कवि चन्द ने पौराणिक घटनाओं को उभारने का अथक प्रयास किया है।

कवि चन्दरबरदाई 'कयमास वध' में तत्कालीन समाज की धार्मिकता, सामाजिक विश्वास भी प्रतिपादित करते हैं यथा -

राषि सरणि सहगवनि मरनं अयुव्व किय।
दरण पेषि दरबान रूक्किय न मग्गु दिय॥

चन्दरबरदायी तत्कालीन प्रथा के अनुसार साज श्रृंगार के साथ सती होने हेतु अपने पति का शव माँगने आई कयमास की पत्नी के तेजपूर्ण स्वरूप का सजीव चित्र अंकित कर देते है। 'अपउ कवि कयमास सतीय सय ले संचरिउ' कहकर तत्कालीन समाज में सती प्रथा के प्रचलन को भी अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। इस प्रकार कयमास वध अनेक मार्मिक प्रसंगों के साथ पृथ्वीराज के माध्यम से तत्कालीन राजाओं की मनमानी प्रकृति व युगीन संदर्भों को भी उभार कर उस समय के भय से भरे हुए वातावरण को सजीव कर देते हैं। कैमास वध के प्रसंग में व्यक्ति की स्वाभाविक प्रकृति का चित्रण भी सामने आता है। व्यक्ति के चरित्र में काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि गुणों का समूह ही उसके अविवेक को जाग्रत कर देता है और व्यक्ति पतन की ओर उन्मुख होता है। यथा कामासक्ति के कारण ही कयमास तथा पृथ्वी दोनों के ही चरित्र का ह्रास होते देखा गया है। वहीं रासोकार पृथ्वीराज के पश्चाताप का भी वर्णन प्रस्तुत करता है

"नहँ सच सुक्ख गवक्ख बह, नह सच अन्दर राज।
उर अंतर कैमास दुखा सामंता सिरताज।

कमास का वध उसके हृदय में चुभता रहता था। इसी पश्चाताप के कारण वह कयमास के पुत्र को अत्यधिक सम्पत्ति, घोड़े हाथी देकर संतुष्ट करता है। इस प्रकार लोभ द्वारा व्यक्ति के चंचल चित्त को स्थिर करने का प्रयास उसकी पश्चाताप की प्रवृत्ति का ही द्योतक सिद्ध होती है। चन्दरबरदायी कयमास वध में राजनैतिक घातों प्रतिघातों का अंकन करने के प्रति सजग रहे हैं। कवि ने ग्रन्थ के आरम्भ में ही कहा था -

'उक्ति धर्म विशालस्य राजनीति नवं रसं।

इस प्रकार कयमास वध में कवि की निपुणता एवं वर्णन कौशल देखते ही बनता है तथा यह अंश साहस, वीरता, क्रोध, शृंगार, शोक आदि विविध रसों को उद्धृत करता है। सुनि कवि मरन टरई नहि रंच्यउ' कहकर वे भाग्यवाद के प्रति आस्था प्रकट करते हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि कयमास वध नामक समय में कवि चन्द ने सम्पूर्ण घटना प्रसंग को विस्तृत फलक पर प्रस्तुत करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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